1-राजनाथ सिंह
गृह मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश में बीजेपी के आखिरी मुख्यमंत्री थे. साल 2002 में सत्ता गंवाने के बाद फिर पार्टी ने राज्य में कभी जीत का मुंह नहीं देखा था. फिलहाल गाजियाबाद से सांसद राजनाथ सिंह ने यूपी विधानसभा चुनाव में 120 रैलियों को संबोधित किया था. वो फिलहाल बीजेपी के सबसे सीनियर नेताओं में गिने जाते हैं और दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. कई अहम ओहदों को संभालने का अनुभव और अगड़ी जातियों का समर्थन उन्हें मजबूत दावेदार बनाता है. हालांकि ये देखना बाकी है कि क्या राजनाथ सिंह केंद्र से राज्य की सियासत में लौटना चाहेंगे?
2- आदित्यनाथ
बीजेपी का कट्टरवादी हिंदू चेहरा माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर इलाके में अच्छी पकड़ है. हालांकि उन्होंने खुद कभी सीएम बनने की मंशा जाहिर नहीं की है लेकिन उनके समर्थक खुलकर ये मांग उठाते रहे हैं. उनपर आरएसएस का हाथ भले हो लेकिन बतौर सीएम चुनना 2019 के आम चुनाव में अल्पसंख्यकों से पार्टी को दूर कर सकता है.
2- केशव प्रसाद मौर्य
केशव प्रसाद मौर्य फिलहाल पार्टी की यूपी इकाई के अध्यक्ष होने के साथ फूलपुर से सांसद भी हैं. 47 साल के मौर्य प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तरह लाइमलाइट में भले ही ना रहे हों लेकिन जानकारों के मुताबिक उन्होंने इस चुनाव में पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई है. कल्याण सिंह के हाशिये में चले जाने के बाद वो गैर-यादव ओबीसी तबके से बीजेपी का चेहरा हैं. हालांकि प्रशासनिक अनुभव की कमी सीएम की रेस में उनके खिलाफ जा सकती है.
4- मनोज सिन्हा
गाजीपुर सांसद मनोज सिन्हा केंद्र में दूरसंचार और रेलवे मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं. आईआईटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर चुके सिन्हा मिडल क्लास को पसंद आ सकते हैं. साफ-सुथरी छवि और पूर्वी यूपी में अच्छा-खासा जनाधार भी उनके पक्ष मे जाते हैं. इसके अलावा सिन्हा को संगठन का कुशल नेता भी माना जाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी एक ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम उठाएगी?
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